29 June 2010

संख्यावाचाक

जापान में बहुत अच्छी जापानी बोलते भारतीय लोग ज़्यादा रहते हैं। लगता है कि भारतीय लोग भाषाएँ के बारे में खासकर प्रातिभावान हैं। सब लोगों को अपनी मातृभाषा के अलावा, काई भाषाएँ आते हैं। हम जापानी अधिकतम जापानी ही बोलते हैं। अंग्रेज़ी जापान में भी एक अनिवार्य विषय और जुनियर हाइ स्कूल से कॉलेज तक 10 सालों के लिए सीखने के बावजूद, मैं अच्छी तरह बोल नहीं सकती। हम कॉलेज या विशवविद्यालय में भी हर विषय जापानी में सीखते हैं।
भारतीय लोगों की प्रतिभा से ही नहीं, मुझे लगता है जापनी भाषा, हिन्दी से आसान है। जापानी में स्त्रीलिंगम पुलिंग नहीं है। एकवचन, बहुवचन का अंतर भी  अधिकतर नहीं , कालिक रूप भी हिंदी की अपेक्षा इतना गूढ़ नहीं है।
फ़िर जापनी में 3 लिपियाँ होते हैं। 2प्रकार की लिपियाँ फ़ोनोग्राम हैं, और दोनों के पास करीब 50 अक्षर हैं।  एक लिपी चीनी मूल की चित्रकक्षर, और आम का जापानी, उन में से  करीब 3000  अक्षर याद करते हैं।  इसलिए लिखने पढ़ने में जापानी मुश्किल है।

जापानी बोलने में, विदेशी लोगों के लिए शायद सम्मांसूचक शब्द और संख्यावाचक कठिन होगा।
हिन्दी में किसी का संख्या कहने में, इस चीज़ से पहले संख्या लगाते हैं, जैसा एक बच्चा, 2 पुस्तक, 3 चाय, 4 पेड ...लेकिन जापानी में सिर्फ़ संख्या ही नहीं, हर संख्यावाचक भी लगाना है। जैसा अंग्रेज़ी का a cup of tea, a peice of paper बगैरह बगैरह। ऐसा संख्यावाचक जापनी में हज़ारों हैं। और जापानी में संख्या कहने में 2 प्रकार हैं। परंपरित जापानी ( जैसा संस्कृत) , और चीनी मूल (जैसा फ़ारसी) का संख्या  ।


अधिकतर हर चीज़ों का संख्या कहने के लिए हर संख्यावाचक हैं। तो संख्यावाचक के बाद का शब्द न सुनने पर भी अधिकतर पता चलता है, किस विषय पर बात करते हैं। उदाहरण के लिए, ' 4 निं आए। ' ...यह सुनकर मालूम होता है कि आए तो इंसान थे। क्योंकि ' निं ' इंसान का  संख्यावाचक है।  '2  हिकि  आए। ' .. .यह भी फ़र्ज कर सकते हैं, आए तो शायद कुत्ते, बिल्ली, ऐसा जानवर होगे। हाथी या घोड़ा की तरह बड़े जानवर नहीं होगा, क्योंकि ऐसे जानवरों के लिए दूसरा संख्यावाचक होता है। लेकिन कठिन बात यह है,  छोटी तितिली का संख्या कहने के लिए, न जाने क्यों, हाथी के एक ही संख्यावाचक हम प्रयोग करते हैं।

23 June 2010

पहचान

भरतीय लोगों से काई बार पूछी जाती हूँ कि जापानी महिलाओं, विवाहित-अविवाहित, कैसे पहचाएँ? भारत में मंगलसूत्र, सिंदूर, या वेडिंग रिंग हैं। सुना है, इसलिए आसनी से पता चलता है। लेकिन जापान में वेडिंग रिंग भी सब का सब विवाहित व्यक्ति पहनना तो ज़रूर नहीं है। शादी में वेडिंग रिंग अदला-बदला करना तो आजकल हमरा आदत हो गया, लेकिन पहले तो ऐसा नहीं था, और शादी के बाद रोज़ रिंग पहननेवाले ज़्यादा नहीं हैं। मेरे पति और मुझ दोनों को रिंग पसंद नहीं है, इसलिए पहले से वेडिंग रिंग नहीं खरीदीं।

बहुत पहले, जब हम जापानी रोज़ किमोनो पहनते थे, तब किमोनो की आस्तीन से पता चला। अविवाहित लड़कियों के किमोनो के पास लम्बी आस्तीन हैं, और विवाहित महिलाओं के किमोनो की आस्तीन छोटी हैं। और विस्तार से ठीक ठीक बताऊँ तो, अविवाहित महिला, छोटी आस्तीन वाली किमोनो भी पहन सकती हैं, पर विवाहित नहिलाएँ, लम्बी वाली  पहनना नहीं मनना जाता है। सिर्फ लम्बीवाली पहननेवाली ही अबविवाहित महिला हैं।


विवाहित महिला...छोटी आस्तीन किमोनो

अविवाहित लड़की ...लम्बी आस्तीन किमोनो 

आदमी के बारे में देखने में अविवाहित-विवाहित पहचाना उपाय, मैं नहीं जानती हूँ।

आम तौर पर जापान में देखने में दूसरों को पहचान करना तो मुश्किल है।बोलेंगे तो बोली के असर से अधिकतर पता चलेगा कि कहाँ में पला है। चेहरा या क़द-काठ में भी बहुत कम लगाने की समाग्री मिल सकते हो...उत्तरी जापान में गोरे लोग अपेक्षाकृत ज़्यादा रहते हैं।लेकिन कुलनाम से ज़्यादा पता नहीं चलता है....150 साल से पहले तक अधिकतम जनता के पास कुलनाम नहीं था। कुलनाम लगाने का व्यवस्था शुरू हुआ, सब अपनी मर्जी या कोई कारण से अपना कुलनाम लगाया।...इस के बारे में फिर लिखना चाहती हूँ।

21 June 2010

लोहा

जापान में ऐसा लोग 'लोहा' कहलाते हैं, जिन्हें रेलवे बहुत पसंद है। रेलेवे  प्रेमी। रेलवे को जापानी में  तेत्सुदो...'लोहे का रास्ता' कहते हैं। तेत्सु मतलब 'लोहा', और दो 'रास्ता' है। हम रेलवे प्रेमी को सिर्फ़  तेत्सु, या अपनेपन से ते-च्चान (तेत्सु चान)  कहते हैं। चानवाले का चान है।
लोहे को रेलवे लाइन या रेल गाड़ी के प्रकार ही नहीं, टाइम टेबुल, रेल गाड़ी चलने का आवाज़, रेलवे  का टिफ़िन, तरह तरह रेलवे से संबंध उत्सुकता लगाती हैं ।

मेरे पति कहते हैं, मेरे ख़ून में भी लोहा काफ़ी होता है।  इतना 'लोहा' नहीं हूँ, लेकिन मुझे भी रेलवे से चलना बहुत पसंद है। हवाई जहाज़ का टिकट कभी कभी रेलवे के से सस्ता होने के बावजूद, हमरी यात्र, ज़्यादातर रेल गड़ी से हैं। टाइम टेबुल देखते देखते कहाँ कब पहुँचेंगे, और उस के बाद किस गाड़ी पकड़ें, ऐसा योजना बनाकर टिकेट का आरक्षित करना तो यात्र वही से ज़्यादा पसंद है।

लेकिन मेरे विचार में मैं खास नहीं है। जैसा मैं, भातरत प्रेमी जापानियों सभी को, भारत में घूमते घूमते आखिर रेलवे पसंद हो जाता है। भारत बड़ा देश है और रेल गाड़ी में रहने का समय भी लम्बा है। हम जापान में 5 घंटे से ज़्यादा अधिकतर नहीं बैठते हैं। 5 घंटे से ज़्यादा समय लगेंगे तो शायद हावाई जहाज़ से जाना रेलवे से सस्ता और सुखुद जा सकते हैं। मैंने बर्थ भारत में पहली बार इस्तेमाल किया।

जापान में कहीं जाना चाहते हैं तो रात तक होटल पहुँचना होगा, लेकिन भारत में रेलगाड़ी में सोते सोते सवेरे कहीं स्टेशान पहुँच सकते हैं। यह बहुत अच्छा है और भारत के स्टेशान के पास रिटाइयारिंग रूम और शावर रूम हैं। रात देर पहुँचेंगे तो स्टेशान में ठहर सकते हैं और नहाकर बाहर जा सकते हैं। अच्छी सुविधाएं और अच्छी व्यवस्था है। जापान के स्टेशान के पास नहीं है, वह रुकने के लिए नहीं, गुज़र जाने की जगह है।

मगर अगर जापान के स्टेशान के पास ऐसा सुविधाएँ होने पर, जापान की यात्र इतना ज़्यादा मज़ेदार नहीं  होगी उतना मैंने भारत में अनुभव प्राप्त किया।क्योंकि जापानी रेलगाड़ी  में सब चुपचप रहते बैटते हैं। बगल के सीट पर बैटते हुए अंजान से बात करने का आदत नहीं है। सब PC से काम करते हैं, सोते हैं, पुस्तक पढते हैं, इयर फोने से सुनते हैं...खुद मज़ा लेते हैं।





रेलवे म्यूजियम, दिल्ली

17 June 2010

जापानी मिठाई का दिन

कल 16 जून, जापानी मिठाई का दिन था। सुना है कि सन् 848, जापान में महामरी से ज़्यादा लोग मर गए। उसी समय के सम्राट महामरी हटाने को भगवान से प्रार्थना करके 16 मिठाइयाँ  चढ़ाएँ। उस दिन को जापानी मिठाई का दिन रखा था।

रोज किसी का दिन है। इसलिए ख़ासकर ध्यान नहीं रखती हूँ, फ़िर भी मुझे जापानी मिठाई बहुत पसँद है।

भारतीय मिठाई अधिकतर दूध, बेसन, घी, मासाले और चीनी से बनी है। यूरोप की तो मैदा, अंडा, मक्खन और चीनी से।  और जापानी मिठाई, अधिकतर चावल, चीनी और बीन से बनी है। तेल मक्खन के बिना, कैलोरी कम है। बीन, खासकर अज़ुकि बीन बहुत ज़्यादा इस्तेमाल की जाती है। बाकला या दूसरे बीन भी हम उपयोग करते हैं। लगता है अज़ुकि का स्वाद मूँग से मिलता जुलता है।
 अज़ुकि (लाल)  ,मूँग, बाकला

जैसी देखने में बिल्कुल दाल, जापान में ऐसी मिठाई भी होती है।
 ज़ेंज़ाई

यह अज़ुकि चीनी के साथ उबालकर कूटे चावल, मोचि के साथ खाते हैं। ऐसा उबालने के बाद ठंडा रखकर, ऐगार से साथ खाती गर्मियों की मिठाई भी है।

कूटे अज़ुकि ख़ासकर अंको कहाकर जैसा मसला डोसे के मासाला, चावल या मैदे से बनी पिंड या लड्डू में डालते हैं। बोतमोचि, अंको से लिपटे हुई चावल है।

एक बार भारत में एक घर में, मैने जैज़ा अंको देखा है। 
 इस से बना मीठा पराठा खाया। इस का नाम क्या है?


यह मिनाज़ुकि का नाम मिठाई है। मिनाज़ुकि, पुरानी जापानी में 'जून' है। कहा जाता है कि जून के अंतिम दिन ( 30 तारीख) को यह मिठाई खाकर बाकी आधा साल का नीरोगता को प्रर्थना करें तो अच्छा है। यह भी चावल आटा, मैदा या कोई स्टार्च, चीनी और अज़ुकि से बनी है।

15 June 2010

तीन टाँग का कौआ

अब दक्षिण अफ्रीका में FIFA (फ़ेडरेशान इंटरनेशनेल डी फुटबॉल एसेसिएशन) वार्ल्ड कप चल रहा है। फुटबॉल जापान में बेसबॉल के बाद सब से दूसरे लोकप्रिय खेल है। 2002 के वार्ल्ड कप, जापान और दक्षिण कोरिया, दोनों देशों के मज़बानी से आयोजित किया गया है।
कल जापान कैमेरून से मैच खेलकर जीत गया। कैमेरून, फिफा में उन्नीसवाँ स्थान है, और जापान पैंतालीसवाँ का है। इसलिए सारे जापान में आज तक उल्लास भरा है।

खैर, JFA, ज़ापान फुटबॉल एसोसिएशन का चिह्न यातागारासु... देतकथा का बड़ा कौआ है, जिस के तीन टाँग हैं। कहा जाता है कि यह यातागारासु, भगवान के संदेशवाहक की रूप में, काम्मु सम्राट, जो स्वर्ग से इस दुनिया आकर, जापान का पहला सम्राट हो गए, उन का सेना को चलने का रास्ता बताया।

सुना है, ऐसा तीन  टाँग की पक्षी, जापान में ही नहीं, दूसरे काई देशों के मिथक में होते हैं। और अधिकतर ऐसी पक्षी सूरज का अवतार है। जापान में भी तीन टाँग का कौआ, ज़रूर पवित्र पक्षी है, और सेना को रासता बताने के अर्थ में, खेल टीम का प्रतीक के लिए बिल्कुल उचित होगा।

लेकिन JFA खासकर इस का मतलब में वह चिह्न को अपनाता है....यातागारासु के तीन टाँग हैं, दो टाँगवाले से अच्छी तरह फुटबॉल क्यों नहीं खेलता ? इस पन्ने के निचला भाग देखिए। 
मुझे JFA का  यह सेंस बहुत पसंद है।

14 June 2010

औजार के प्रति लगाव

कल जापान के वैज्ञानिक उपग्रह, क्षुद्रघह अंवेषी, हायाबुसा 7 सालों  के बाद अंतरिक्ष  से वापस आया। सालों अनेक काम करके आखिर वायुमंडल में आकर जल गया। इस हायबुसा को भूरि प्रशांसा करते आवाज़ जापान में भरा था। ज़रूर हम काफी समझते हैं कि यह महा काम हायाबुसा प्रोजेक्ट टीम से पूर्ति की गई है। फ़िर भी किसी तरह, लगता है कि हायाबुसा जैसा वीर है जो सारा बदन घायल होने पर तनमन से काम पुउरा करके, काम के मारे मर गया।

हायाबुसा ही नहीं, हमें ऐसा कभी कभी औजार के प्रति प्यार लगता है।  गुडिया छोड़ने के समय भी पूजा करके पवित्र आगे से जलाते हैं, सिलाई की सूई भी साल में एक दिन, तोफ़ु (सोयबीन से बने पनीर )  में रखकर धन्यवाद देते हैं।
हमरे घर की वाशिंग मशीन 15 सालों से ज़्यादा, रिफ़्रिजरेटर 11 साल पहले से रोज काम करते आए हैं, मेरे महात्वपूर्ण सहयोगी हैं।  लंबा समय साथ साथ रहने से औजार भी दोस्त हो जाता है।

हायाबुसा के बारे में यह कार्यक्रम, 18 जून तक सुन सकते हैं।

12 June 2010

शादी के लिए अच्छा दिन



आज शनिवार, 12 जून है। फ़िर  ताइअन... जापानी पंचांग में मंगल दिन है। शायद सारे जापान के जहाँ-जहाँ में शादी हुई होगी। शनिवार और रविवार, जापान के अधिकतर कॉपनी में छुट्ठी है, और मंगल दिन।
पुराने जापान में जून तो शादी समय नहीं था। जापान में वसंत... मार्च से माई, या शरद...सितंबर से नवंबर साल में सब से सुखद मौसम हैं। जून से जुलाई बरसात के लिए मौसम इतना अच्छा नहीं है...उमस भरा है।  लेकिन आजकल "जून ब्राइड सुखी हो जाती है ।" ... ऐसा कहाकर जून में शादी होनेवाले पहले से ज़्यादा हो गए।

जापान में शादी अपने धर्म के अनुसार आयोजित की जाती है। हमरी शादी, 21 साल पहले शिंतो (जापानी भगवान धर्म) की शैली से हुई।
जापानी भगवान के सामने सदा के लिए एक दूसरे से प्यार करने का संकल्त करके, प्रसाद (शराब) लिए।
                                      
संकल्त  


                                               
जापान में भी मंगल रंग लाल है, लेकिन विवाह संस्कार में वधू सफ़ेद किमोनो पहनती है। सफ़ेद पवित्र रंग है, और किसी रंग भी साफ साफ लगा सकते हैं.....मतलब वधू को ससराल शैली की आदी होना।

जापान में शादी करना तो पिता जी की जिम्मेदारी ही नहीं है। जैसे हम, दंपति खुद अपनी शादी करना भी आम की बात है। इसलिए आजकल दोनों के नया जीवन शुरु करने में खर्च कम करने के लिए, विवाह संस्कार न करने वर-वधी भी ज़्यादा हो रहे हैं।

01 June 2010

चान वाला

शिष्टता से दूसरे लोग पुकारने में, हिन्दी में नाम के साथ "जी " लगाते हैं। जैसा जापानी में "सान" इस्तेमाल  करते हैं। "ओबा-सान" का सान, "मौसी जी " की  "जी" है। लेकिन जापान में मौसी को सान के बिना, सिर्फ़  "ओबा"  के शब्द में कभी नहीं पुकारते हैं। क्योंकि अधिकतर मौसी अपने से बड़ी हैं, बड़े लोगों को नाम में ही  पुकारने का आदत जापान में नहीं है।

सान तो सभी के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन छोटे लोगों  या अंतरंगों को हम अधिकतर सान की बजाए, अपनेपन से चान या कुन लगाकर नाम लेते हैं। "कुन" अधिकतर लड़के के लिए इस्तेमाल करते हैं, जैसा "राजेन्द्र-कुन", "राजु-कुन", या कुलनाम के साथ, "सिंह-कुन"।

 "चान" तो लड़के से लड़कियों के लिए ज़्यादा उपयोग करते हैं, लेकिन लड़के के लिए भी "चान" लगा सकते हैं। लगता है कि चान वाले कुन वाले से और अंतरंग संबंध है। आम तौर पर, बड़े होने के बाद, बच्चों को छोड़कर दूसरे को चान या कुन में नहीं पुकारते हैं। सिर्फ़ पुराना  मित्र, जिस से संबंध बचपन से ज़ारी रहा है, जिस के नाम लेने में ही अपने आप चान कहते हैं।

अब तक मेरे मित्र, पति, और कभी कभी भाइयां, मंमी भी चान लगाते मेरा नाम लेते हैं।