"जं-कें-पों!" ऐसा पुराकर "पों" के आवाज़ के साथ, हाथ से बनाए हुए मुद्र एक दूसरे को दिखाते हैं, और उस मुद्र से जीत-हार निश्चित करते हैं।
चोकि...क़ैची
पा...कागज़
पत्थर चूंकि इतना कड़ा है कि क़ैची से काट नहीं पाता। इसलिए पत्थर क़ैंची को जीतता है।
क़ैंची कागज़ काट सकती है, इसलिए क़ैंची कागज़ को जीतती है।
लेकिन कागज़ से पत्थर लपेट सकता है, इसलिए कागज़ पत्थर को जीतता है।
पत्थर कैंची से, क़ैंची कागज़ से, और कागज़ पत्थर से बढिया है।
अगर एक ही मुद्र बनाएँ तो बराबर हो जाता है। कोई जीतनेवाला नहीं है।
फ़िर "जं-कें-पों" की वजह "आइको-दे-शो"(बराबर) कहाकर, जीत-हार मिलने तक मुद्र बनाकर खेलते हैं।
"ये भी मज़ेदार गेम है ..आपका ब्लोग को पढ़ने में अच्छा लगता है आपकी पोस्ट भी बेह्द अच्छी लगती है...यहाँ भी हिन्दुस्तान में कई खेल खेले जाते हैं पर जिन्हे बच्चे ही खेलते हैं जैसे साँप -सीढ़ी, लूडो, (पहले मेरी बहन चंगे-अष्टे खेला करती थीं जो कि आज तक मुझे समझ नहीं आया) और भी कई गेम है जिन्हे में फिर कभी विस्तार से बताऊँगा ..तब तक के लिये विदा oba-san फिर मिलते हैं और बहुत अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteAmitraghat जी,
ReplyDeleteसाँप -सीढ़ी, लूडो या चंगे-अष्टे तो पहली बार सुना। आपका रेपोर्ट इंतज़ार करती हूँ।