05 August 2010

पृथ्वी कला मेला

जहाँ में 3 से 18 वर्ष की आयु तक मैं रहती थी और अब तक मेरा मैका है, तोओकामाचि जापान के एक छोटा शहर है। उस की जनसंख्या सिर्फ 60,000 से कम, उस का मुख्य उद्योग किमोनो था,  फिर भी चूंकि अब जापानी किमोनो बहुत कम पहनते हैं, इसलिए किमोनो उद्योग भी ढल हो गया। बाकी स्वादिष्ट चावल और बरफ़ से प्रसिद्ध शहर है।

वहाँ तोओकामाचि में सन् 2000 से हर 3 साल में 'पृथ्वी (ज़मीन) कला मेला' का नाम Art Triennial आयोजित किया जाता है। 2000, 2003, 2006, 2009, अब तक चार बार। हर पृथ्वी कला मेला के लिए देश विदेशों से 150-250 कलाकार आकर कलकृतियाँ बनाते हैं। जब मैं 2006 में गई, भारतीय कलालार, Mandan Lal की कलाकृति भी देखा।

इस साल 2010, मेला का साल नही6 है। लेकिन तीन सालों के बीच में भी हर साल कुछ न कुछ कार्यक्रम चलाते हैं। अब अगस्त के अंतिम दिन तक करीब एक महीने के लिए तरह तहर के कार्यक्रम चले रहे हैं। इधर उधर के कलाकृतियाँ देखने घूमने की बस ब ही चलती है। ....हाँ,  पृथ्वी कला मेला, म्यूजियम में देखते नहीं। तोओकामचि और इस के बगलवाले नगर, त्सुनंमाचि के 760km2 के इलाके में, इधर उधर कलाकृतियाँ बने हैं। खेत में, खाली ज़मीन पर, खाले मकान में...।
किमोनो उद्योग ढलने के बाद, अपने पुश्तैनी ज़मीन, मकान छोड़कर वहाँ से बड़े शहर गए, ऐसा लोग कम नहीं था। ऐसा खाले मकान, स्कूल में भी कलाकृति बनाना और सजाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।यह भी एक खाला मकान था।

यह एक किसान का पुराना मकान था। अब कोई भी नहीं रहते हैं। एक विश्वविद्यालाय के टीम ने इस मकान को पूरा उत्कीर्ण कर डाला...छत, फर्श, दीवार, सारा मकान को।

यह रूसी के Ilya & Emilia Kavakov का कलाकृति है।




इस खेत के मलिक बूढ़े होकर सीढ़ीदार खेत में चावल बनाने में कठिनाई महसूस करने लगे। अगले साल, चावल बनाना छोड़ दूँगा...ऐसा सोचते थे। लेकिन Ilya & Emilia Kavakov ने खेत में कलाकृति बनाए। वे कालकृति, गुड़िया, खेत में कम करने के लिए बाधा हैं। पर...मलिक को वे पसंद आया...और अब प्यारा लगता है।  शायद इस साल भी, उन  मलिक, गुड़ियों के साथ खेत में काम करते होंगे।

मुझे सब से यह अच्छा लगा।

यह सड़क चलेंगे तो अवाज़ सुनाई दे रहा है। तोओकामाचि के बड़े लोग त तोओकामाचि बोली में ऐसा  कहते हैं  "आइए, अंदर अना।"रंग रंग के लकडी प्लेट में, हर बूडे लोगों के उपनाम लिखे हैं जो तोओकामाचि के एक छोटे इलाके में रहते हैं। मेरे पिता माता तोओकामचि वाले नहीं होने के बावजूद, उस बोली सुनकर कंठ भर आया।


पृथ्वी कला मेला के कलाकृतियाँ, इस साइट में देख सकते हैं। इमारत में नहीं, खुला जगह, सुन्दर देहात के नज़्ज़ारा के साथ, ताज़ा हवा लेते लेते देखने की कलाकृति भी बहुत खूब।

8 comments:

  1. पहाड़ों में सीढीदार खेत तो बनाने ही पड़ते हैं।
    तभी किसान खेती कर पाता है।

    अच्छी पोस्ट
    धन्यवाद

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  2. hmm, bahut se nai jankari mili aapki is post se mausi jee.

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  3. ललित शर्मा जी,
    भारत में भी सीढ़ीदार ख़ेत होता है क्या? अब अधिकतर माशीन से खेती करते हैं, इसलिए जैसा सीढ़ीदार खेत में चावर बनानेवाला कम हो गया।

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  4. Sanjeet Tripathi जी,
    मुझे बचपन में ऐसा छोटा शहर ऊब लगता था। तोओकामचि बोली भी शर्मिंदा महसूस हुआ था। अब वतन बहुत सुन्दर लगता है।

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  5. @ mausi

    हाँ, भारत के पहाड़ी अंचल में सीढ़ीदार खेत होते हैं. जिसमे मक्का, ज्वार, सब्जी आदि फसलें ली जाती हैं.

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  6. ललित शर्मा-للت شرما जी,
    सीढ़ीदार चावल खेत के मेंड़ में हम कभी कभी सोयबीन उगाते हैं। सोयबीन ज़मीन को नाइद्रोजन देकर चावल स्वादिष्ट बनाते हैं, और उबले हरा सोयबीन गरमी का सुख है।

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  7. KHAALI STHAAN MEN KALAAKRITIYAAN BANAANE KA CONCEPT ANUTHAA HAI,MAUSI JI AAP JAPAN KE BAARE MEN ACHHI JAANKARIYAAN DE RAHI HAIN.ISASE AAM BHAARTIYA JAPAN KE KARIB PAHUNCH RAHAA HAI.

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  8. KAUSHALENDRA ji,

    Jawab dene mein itni der hone ke lie kshama kijie. Main fir maika gai thi. Is saaal to meka ka saal nahin tha, fir bhi shahar bhar karaakriyaan zyaadaa rahane se chalna bhi mazaa aaya.

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