हम किसी अवसर पर किसी शब्दों को कभी कभी कतराते हैं, अशुभ दूर रखने के लिए।
उदाहरण के लिए, शादी में "काटना" "फटना" "टूटना" "दरार पड़ना", जिस के पास एक को अलग अलग करने का मतलब है, ऐसा शब्द अशुभ लगता है।
और परीक्षा से पहले, "गिलना" "फिसलना" भी अच्छ नहीं है। जापानी में "असफल होना" तो ऐसा शब्द से अभिव्यक्त करते हैं। बीमार, मृत्यु, ऐसा दुख अवसर पर "दोबारा" "बार बार" ऐसा शब्द भी उचीत नहीं है।
नर्वस लोग तो सुरिबाचि भी "आतरिबाचि" कहते हैं। क्योंकि "सुरि" में कूटना का मतलब ही नहीं, खोना या जेबकतरा का अर्थ भी है। तो खोना की जगह, हिट मिलना, लगाना, चलना, ऐसे अर्थ का शब्द "आतारि" इस्तेमाल करते हैं।
08 April 2010
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मौसी जी बहुत अच्छा बताया आपने जेपेनीज़ समाज के बारे में...शुभ कार्यों में नकरात्मक शब्दों का उपयोग हिन्दुस्तान में भी नहीं होता मेरी दीदी बचपन में बोलती थीं कि पूरे 24 घण्टों में कभी भी पृथ्वी एक बार तथास्तु कहती है यानि हम जो भी बोलते हैं वो सच हो जाता है इसलिये हमेशा शुभ बोलना चाहिये....मुझे लगता है कि मैं खूब सारे जेपेनीज़ शब्द सीख जाऊँगा आपकी पोस्ट से ....मेरी माँ ने भी आपको नमस्कार बोला है.....बहुत अच्छी पोस्ट......."
ReplyDeleteAmitraghat जी,
ReplyDelete> हम जो भी बोलते हैं वो सच हो जाता है
जापान में भी ऐसा कहा जाता है। हम इसपर विशवास करते हैं कि शब्द आत्मा का आवास है।
जापानी भाषा या संस्कृत सीखने के लिए यह बहुत अच्छा है।
http://www.nhk.or.jp/nhkworld/hindi/top/index.html