सब से पीछे अंतिम पत्र में टीवी कार्यक्रम लिखा है।
हमारे घर में एक दैनिक अख़बार मंगवाते हैं। दिन में दोबारा, सवेरे और शाम को पहुँचता है। रविवार और छुट्टी दिन शाम का अख़्बार नहीं है, सिफ़ सवेरे ही आता है।
दुकान या स्टेशन पर भी अख़बार खरीद सकते हैं, लेकिन माहवारी पढ़े तो, बारिश भी हो, हर स्थिति में भी, ज़रूर मिलता है। और चंदा के अवला रोज़ पहुँचवाने के लिए खासकर पैसा नहीं लगाता है। आजकल समाचार पत्र से नहीं, वेव साइट में समाचार पढ़नेवाला बढ़ रहा है। लेकिन मुझे अख़बार पसंद है। अगर घर में समाचार पत्र नहीं हो तो सब्जी ताज़ा रखने के लिए किस से लपेटूँ ? और खिड़की साफ़ करने के लिए भी समाचार पत्र सब से उपयोगी है।
खासकर अख़बार मंगवाते तो, रोज़ चर्चा पत्र भी साथ साथ आते हैं। आसपास के दुकान का विज्ञापन के।
चर्चा पत्र
आज का डिस्कौण्ट क्या है? आज किस दुकान में क्या क्या सस्ता मिलेगा? यह ढूँढना तो मेरा सुबाह का मनोरंजन है।
"बहुत अच्छी पोस्ट मौसी जी,मेरी माँ भी अख़बारों का उपयोग सब्जी-भाजी रखने के लिये,काँच साफ करने के लिये करती हैं और मैं तो अखबार पर ही कार्टून बनाता हूँ हमारे यहाँ पाँच अख़बार आते हैं केवल सुबह । अभी भी यहाँ पर नए-नए अख़बार मार्केट में आ रहे हैं नई-नई गिफ्ट स्कीम लेकर......फिर मिलते हैं"
ReplyDeleteAmitraghat जी,
ReplyDeleteभारत में भी काँच साफ करने के लिए अख़बर उपयोग करते हैं? आपकी मंमी जी को मेरी ओर से नमस्कर बताइएगा। आपके कार्टून देखा। बहुत बढिया है! मैं भी थोड़ा बनाती हूँ।
http://homepage2.nifty.com/at_toko/profile.html
sorry, japanese only
वा्ह मौसी आप तो आज कल अच्छी जानकारी दे रही हैं
ReplyDeleteवैसे पढ़ने बाद अखबार बहु्त काम आता है।
ललित शर्मा जी, धन्यवाद।
ReplyDeleteयहाँ भुना शकरकंद खरीदूँ तो, शकरकंदवाला, समाचार पत्र से बना बैग में गरम गरम शकर
कंद डालकर देते हैं। खासकर घुड़दौड़ या मोटरबोट रेस का समाचार पत्र का बैग।
जैसा भारत का मूँगफलीवाला।
नमस्ते मौसी, मुझे तो हिंदुस्तान में अख़बार के लिफाफे पर लिखी खबर पढने में बहुत मजा आता है|
ReplyDeleteकभी-कभी तो पानी न मिलने पर अख़बार टिशु पेपर के रूप में भी उपयोग होता हैं बेचारा अख़बार हम हिन्दुस्तानी उसपर कितना जुल्म ढाते हैं|
ラジブसान,
ReplyDelete> कितना जुल्म ढाते हैं|
बिलकुल बिलकुल। हम भी। :-D
लेकिन पुराना जापान में ऐसा भी कहा जाता था कि लेखक या कवि क लंच बॉक्स तो अख़बार से मत लपेटना। ताकि टिफ़िन के रस से अख़बार गंदा न करे। क्यंकि लेखक या कवि अक्षर से कमाते हैं। अक्षर लिखा कागज़ पर आदर और ध्यान करना है।
>आदर और ध्यान करना है।
ReplyDeleteआदर और ध्यान रखना है ? मेरी गड़बड़
हिन्दी, सुधारिए
।
मौसी जब मैं स्कूल में पढता था तो किताब पर पैर आ जाने या निचे गिर जाने पर, उसको उड़कर अपने माथे पर लगता था| क्योंकि हम उसको विद्या माता मानते हैं| इसलिए हमें जिस चीज से भी ज्ञान मिलता है वो हमारे लिए भगवान के सामान है या जिस चीज से हम कमाते हैं वो भी हमारे लिए भगवान के समान है| तो लेखक के लिए उसकी कलम और पुस्तक भगवान के समान है तो उसका आदर होना चाहिए|
ReplyDeleteहिंदुस्तान में भी औजार की पूजा होती| उस दिन को हम विशकर्मा दिवस के रूप में मानते हैं| उस दिन कोई भी अपने औजार इस्तेमाल नहीं करता| बल्कि उनकी पूजा होती है|
>अक्षर लिखे कागज का आदर होना चाहिए|
ラジブसान
ReplyDeleteबहुत अच्छी बात है। भारत के इंटरनेट काफ़े में दुकान खोलने से पहले, अगरबत्ती जलाते पूजा करने को मैं देखा। शायद PC के लिए। औजार में ही नहीं, भगवान तो इधर उधर होते हैं।