रक्षा बंधन बधाई हो!
सुना है कि रक्षा बंधन भाइयों-बहनों क त्योहार है। बहन अपने भाइयों को राखी देती हैं और भाई बहनों की रक्षा करने को प्रतिज्ञा करते हैं। यह जाने के बाद, मैं हर साल भारतीय मित्रों को राखी भेजती हूँ। ज़रूर, जापान में राखी नहीं है, इसलिए अपने हाथ से किसी तरह राखी-वाई बनाती हूँ। इस साल की राखी ऐसी हैं।
पता नहीं उन लोगों को ऐसी अजीब राखी वाई पसंद आएँ या नहीं। एक बार जापानी वासी भारतीय आदमी को भी दी थी, लेकिन लगता है कि उन को इतना पसंद नहीं आई। फ़िर भी भारत में बहुत ज़्यादा भाईयोंने मेरे सेवा कर देते थे। मैं वह कबी नहीं भूलूँगी, यह बताने की जगह हर साल भीजती हूँ।
मेरे दो बड़े भाइ हैं। लेकिन जापान में रक्षा बंधन नहीं है, इसलिए अब तक उन्हों को राखी नहीं भेजी हूँ। लेकिन इस साल एक भाई को पहली बार राखी भीजी। वे अब बीमार हैं। जल्दी ठीक होकर सदा के लिए मेरी रक्षा कर दें ... ऐसा बताना चाहती थी।
आज रक्षा बंधन की बात वेब पर लिखकर, दूसरे लोग से एक टिपण्णी मिली। इस में ऐसा लिखा था ... दक्षण जापान, ओकिनावा में, 'ओनारि -गामि' का नाम विशवास है। ओकिनावा बोली में 'ओनारि' मतलब 'बहन' । वहाँ ऐसा कहा जाता है कि बहनों के पास शक्ती है कि भाई की रक्षा करने की। भाई मछ्ली पकड़ने समद्र जाता है, तब बहन भाई को कुछ देती है, और यह कवच हो जाता है। भाई की शादी होने के बवजूद, जब भाई की तबीयत ख़राब हो जाएँ तो, ठीक होने के लिए प्रर्थना करने के लिए पत्नी नहीं, बहन बुला जाती है।
यह जाने के पहले मैंने राखी भीजी। अब आशा करती हूँ मेरी राखी भाई के कवच हो जाएगा।
24 August 2010
15 August 2010
15 अगस्त
भारत का स्वतंत्रता दिवस बधाई हो ! मैं सन् 2006 में भारतीय दोस्त के साथ स्वतंत्र दिवस मनाने तोक्यो के भारतीय दूतावास गई हूँ।
इधर जापान में भी 15 अगस्त तो विशेष दिवस है। सन् 1945 के इसी दिन, हार से हापान के लिए द्वितीय विश्व युद्ध खतम हो गया। 15 अगस्त हमरे लिए युद्ध के डर, दुख याद करके, फिर कभी नहीं लड़ने का निश्चय करने का दिन है।
विश्व युद्ध के काफ़ी बाद मेरा जनम हुआ था। फ़िर भी ऐसा कहा सकती हूँ ... हम अंतिम पीढ़ी हैं जिसे युद्ध के अहसास होता है। मेरे पिता जी लड़ाई गए। मेरी सहेली के पिताजी को हिरोशिमा में बमबरी हो गया। और मेरे बचपन में कभी कभी आहत सैनिक देखा। जैसा कोइ मेला, ज़्यादा लोग शहर में आने के दिन, आहत सैनिक ... युद्ध में बाह या पाँव खोए लोग, ज़मीन पर बैठे हुए थे। शायद युद्ध खतम होने के बाद तब करीब 25 साल हो गए हो। फिर भी लोगों के लिए युद्ध के याद तब तक साफ़ था और ऐसा लोग भी कम नहीं होगा कि अपने परिवार युद्ध में खो गय। इसलिए अधिकतर लोग आहर सिपाहियों को पैसा देते थे। अपनी मंमी से भी बार बार यद्ध की बात सुना। मंमी की सहेलियाँ हर महीने एक पुस्तिका प्रकासित क रते हैं। अब PC से सब कुछ आसानी से बना सकने के बावजूद, वे लोग साहस के साथ, हस्त्लिखित पुस्तिका बनाते हैं। हमेशा उस पुसतिका 4 पन्ने की है, लेकिन हर साल के अगस्त के अंक, खासकर 24 पन्ने हिस्सा लेते हैं। युद्ध की बात लिखने के लिए। ऐसा अगली पीढ़ी को युद्ध की बात सुनाने की कोशिश करते हैं। युद्ध दुख है, कोई अच्छाई नहीं है ... यह समाझाने की कोशिश तनमन से करते हैं।
और 15 अगस्ते के आसपास जापान में ओबोन का नाम जापानी बौध तयोहार है। कहा जाता है कि ओबोन में स्वर्गवासी पूर्वाज हमें मिलने के लिए इस दुनिया वापस आते हैं। हम सपरिवार पूर्वाज स्वागत करने के लिए अपने देश वापस जाते हैं और इसके लिए अधिकतर जापानी कंपनियों में 15 अगस्त के आसपास छुटठियाँ देते हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध खतम होकर 65 साल बीत गए। इस युद्ध जाननेवाले भी कम हो रहे हैं। लेकिन हम जापानी, कभी भूल नहीं सकते। सदा के लिए याद रखना चाहिए। युद्ध दुख है। अपने प्यारे लोग भी मर जाता है। कोई अच्छाई नहीं है। कभी नहीं लड़ाई करना।
इधर जापान में भी 15 अगस्त तो विशेष दिवस है। सन् 1945 के इसी दिन, हार से हापान के लिए द्वितीय विश्व युद्ध खतम हो गया। 15 अगस्त हमरे लिए युद्ध के डर, दुख याद करके, फिर कभी नहीं लड़ने का निश्चय करने का दिन है।
विश्व युद्ध के काफ़ी बाद मेरा जनम हुआ था। फ़िर भी ऐसा कहा सकती हूँ ... हम अंतिम पीढ़ी हैं जिसे युद्ध के अहसास होता है। मेरे पिता जी लड़ाई गए। मेरी सहेली के पिताजी को हिरोशिमा में बमबरी हो गया। और मेरे बचपन में कभी कभी आहत सैनिक देखा। जैसा कोइ मेला, ज़्यादा लोग शहर में आने के दिन, आहत सैनिक ... युद्ध में बाह या पाँव खोए लोग, ज़मीन पर बैठे हुए थे। शायद युद्ध खतम होने के बाद तब करीब 25 साल हो गए हो। फिर भी लोगों के लिए युद्ध के याद तब तक साफ़ था और ऐसा लोग भी कम नहीं होगा कि अपने परिवार युद्ध में खो गय। इसलिए अधिकतर लोग आहर सिपाहियों को पैसा देते थे। अपनी मंमी से भी बार बार यद्ध की बात सुना। मंमी की सहेलियाँ हर महीने एक पुस्तिका प्रकासित क रते हैं। अब PC से सब कुछ आसानी से बना सकने के बावजूद, वे लोग साहस के साथ, हस्त्लिखित पुस्तिका बनाते हैं। हमेशा उस पुसतिका 4 पन्ने की है, लेकिन हर साल के अगस्त के अंक, खासकर 24 पन्ने हिस्सा लेते हैं। युद्ध की बात लिखने के लिए। ऐसा अगली पीढ़ी को युद्ध की बात सुनाने की कोशिश करते हैं। युद्ध दुख है, कोई अच्छाई नहीं है ... यह समाझाने की कोशिश तनमन से करते हैं।
और 15 अगस्ते के आसपास जापान में ओबोन का नाम जापानी बौध तयोहार है। कहा जाता है कि ओबोन में स्वर्गवासी पूर्वाज हमें मिलने के लिए इस दुनिया वापस आते हैं। हम सपरिवार पूर्वाज स्वागत करने के लिए अपने देश वापस जाते हैं और इसके लिए अधिकतर जापानी कंपनियों में 15 अगस्त के आसपास छुटठियाँ देते हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध खतम होकर 65 साल बीत गए। इस युद्ध जाननेवाले भी कम हो रहे हैं। लेकिन हम जापानी, कभी भूल नहीं सकते। सदा के लिए याद रखना चाहिए। युद्ध दुख है। अपने प्यारे लोग भी मर जाता है। कोई अच्छाई नहीं है। कभी नहीं लड़ाई करना।
13 August 2010
जापानियों के नाम 1
जापानी का नाम, अपना नाम और कुलनाम से बना है। बीच का नाम, जैसे अपने पिताजी का नाम, जगह का नाम, ऐसा नाम नहीं लगाते हैं। और पहले कुलनाम, और इस के बाद अपना नाम आते हैं। ...उदाहरण के लिए, राज कपूर, जापानी शैली में लिखूँ तो कपूर राज हो जाता है। जापान ही नहीं, चीन और कोरिया के नाम भी ऐसा है। चीनी अभिनेता, जैकी चैन का सही ( जन्म) नाम तो 陳 港生 चैन कॉंग सैग है। चैन उस के कुलनाम और कॉगसैग अपना नाम है।
150 साल पहले तक अधिकतर जापानी जनता के पास कुलनाम नहीं था। सिर्फ़ कुलीन, क्षत्रिय, बड़े सेठ, ऐसा बड़े लोगों ही कुलनाम इस्तेमाल करते थे। और कुलीन, क्षत्रिय, कुलनाम के अलावा, ओहादा, जगह का नाम, आदि तरह तरह की जानकारी नाम में लगाते थे। सन् 1857 में आधुनिक राज्य के व्यवस्था से सब लोगों को कुलनाम लगाना अनिवार्य हो गया। तब तक जिस के पास क्कुलनम नहीं था, वे लोग अपनी मर्जी से नाम लगा सकते थे। प्रसिद्ध वीर के कुलनाम, जगह का नाम, जैसा जंगल में रहने वाले का कुलनाम 'जंगल', नया अजीब नाम, सब कुछ मना था। पहले का कुलनाम छोड़कर खुद नया नाम लगाए लोग भी कम नहीं था।
अब सब के सब के पास एक अपना नाम और एक कुलनाम है। शादी के बाद, पति या पत्नी, दोनों के एक कुलनाम ही चूनना चाहिए। अब शादी के बाद भी अपना कुलनाम छोड़े बिना, अलग अलग कुलनाम लगाने का विचार भी बढ रहा है।
खैर, जापान में, ऐसा परिवार भी होता है जिन लोगों के पास कुलनाम नहीं है। वह सम्राट के परिवार हैं। अब के सम्राट का नाम अकिहितो है। फिर भी हम कभी नहीं उन्हों को उन के नाम से लेते हैं। ज़रूर, सिर्फ सम्राट कहते हैं। तो कहने में कैसे अब का सम्राट और दूसरे सम्राठ से अलग अलग करें? अब का सम्राट तो खासकर 'किंजो तेन्नो' (अब का सम्राट) कहते हैं। और सब सम्राट, स्वर्गवास होने के बाद दूसरा सम्राट नाम दिए जाता है। अब का सम्राट के पिता जी का नाम हिरोहितो था, और उन का दिए गया सम्राट नाम तो शोओवा सम्राट है। इसलिए हम उन लोगों को चर्चा करने के लिए, 'शोओवा सम्राट और (किंजो) सम्राट', ऐसा कहते हैं। राजकमारी (सम्राट की बेटी) , शादी के बाद पहली बार अपना कुलनाम प्राप्त करती हैं। और सम्राजी को, सम्राट से शादी होने के लिए कुलनाम छोड़ना पड़ता है।
150 साल पहले तक अधिकतर जापानी जनता के पास कुलनाम नहीं था। सिर्फ़ कुलीन, क्षत्रिय, बड़े सेठ, ऐसा बड़े लोगों ही कुलनाम इस्तेमाल करते थे। और कुलीन, क्षत्रिय, कुलनाम के अलावा, ओहादा, जगह का नाम, आदि तरह तरह की जानकारी नाम में लगाते थे। सन् 1857 में आधुनिक राज्य के व्यवस्था से सब लोगों को कुलनाम लगाना अनिवार्य हो गया। तब तक जिस के पास क्कुलनम नहीं था, वे लोग अपनी मर्जी से नाम लगा सकते थे। प्रसिद्ध वीर के कुलनाम, जगह का नाम, जैसा जंगल में रहने वाले का कुलनाम 'जंगल', नया अजीब नाम, सब कुछ मना था। पहले का कुलनाम छोड़कर खुद नया नाम लगाए लोग भी कम नहीं था।
अब सब के सब के पास एक अपना नाम और एक कुलनाम है। शादी के बाद, पति या पत्नी, दोनों के एक कुलनाम ही चूनना चाहिए। अब शादी के बाद भी अपना कुलनाम छोड़े बिना, अलग अलग कुलनाम लगाने का विचार भी बढ रहा है।
खैर, जापान में, ऐसा परिवार भी होता है जिन लोगों के पास कुलनाम नहीं है। वह सम्राट के परिवार हैं। अब के सम्राट का नाम अकिहितो है। फिर भी हम कभी नहीं उन्हों को उन के नाम से लेते हैं। ज़रूर, सिर्फ सम्राट कहते हैं। तो कहने में कैसे अब का सम्राट और दूसरे सम्राठ से अलग अलग करें? अब का सम्राट तो खासकर 'किंजो तेन्नो' (अब का सम्राट) कहते हैं। और सब सम्राट, स्वर्गवास होने के बाद दूसरा सम्राट नाम दिए जाता है। अब का सम्राट के पिता जी का नाम हिरोहितो था, और उन का दिए गया सम्राट नाम तो शोओवा सम्राट है। इसलिए हम उन लोगों को चर्चा करने के लिए, 'शोओवा सम्राट और (किंजो) सम्राट', ऐसा कहते हैं। राजकमारी (सम्राट की बेटी) , शादी के बाद पहली बार अपना कुलनाम प्राप्त करती हैं। और सम्राजी को, सम्राट से शादी होने के लिए कुलनाम छोड़ना पड़ता है।
05 August 2010
पृथ्वी कला मेला
जहाँ में 3 से 18 वर्ष की आयु तक मैं रहती थी और अब तक मेरा मैका है, तोओकामाचि जापान के एक छोटा शहर है। उस की जनसंख्या सिर्फ 60,000 से कम, उस का मुख्य उद्योग किमोनो था, फिर भी चूंकि अब जापानी किमोनो बहुत कम पहनते हैं, इसलिए किमोनो उद्योग भी ढल हो गया। बाकी स्वादिष्ट चावल और बरफ़ से प्रसिद्ध शहर है।
वहाँ तोओकामाचि में सन् 2000 से हर 3 साल में 'पृथ्वी (ज़मीन) कला मेला' का नाम Art Triennial आयोजित किया जाता है। 2000, 2003, 2006, 2009, अब तक चार बार। हर पृथ्वी कला मेला के लिए देश विदेशों से 150-250 कलाकार आकर कलकृतियाँ बनाते हैं। जब मैं 2006 में गई, भारतीय कलालार, Mandan Lal की कलाकृति भी देखा।
इस साल 2010, मेला का साल नही6 है। लेकिन तीन सालों के बीच में भी हर साल कुछ न कुछ कार्यक्रम चलाते हैं। अब अगस्त के अंतिम दिन तक करीब एक महीने के लिए तरह तहर के कार्यक्रम चले रहे हैं। इधर उधर के कलाकृतियाँ देखने घूमने की बस ब ही चलती है। ....हाँ, पृथ्वी कला मेला, म्यूजियम में देखते नहीं। तोओकामचि और इस के बगलवाले नगर, त्सुनंमाचि के 760km2 के इलाके में, इधर उधर कलाकृतियाँ बने हैं। खेत में, खाली ज़मीन पर, खाले मकान में...।
किमोनो उद्योग ढलने के बाद, अपने पुश्तैनी ज़मीन, मकान छोड़कर वहाँ से बड़े शहर गए, ऐसा लोग कम नहीं था। ऐसा खाले मकान, स्कूल में भी कलाकृति बनाना और सजाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।यह भी एक खाला मकान था।
यह एक किसान का पुराना मकान था। अब कोई भी नहीं रहते हैं। एक विश्वविद्यालाय के टीम ने इस मकान को पूरा उत्कीर्ण कर डाला...छत, फर्श, दीवार, सारा मकान को।
यह रूसी के Ilya & Emilia Kavakov का कलाकृति है।
इस खेत के मलिक बूढ़े होकर सीढ़ीदार खेत में चावल बनाने में कठिनाई महसूस करने लगे। अगले साल, चावल बनाना छोड़ दूँगा...ऐसा सोचते थे। लेकिन Ilya & Emilia Kavakov ने खेत में कलाकृति बनाए। वे कालकृति, गुड़िया, खेत में कम करने के लिए बाधा हैं। पर...मलिक को वे पसंद आया...और अब प्यारा लगता है। शायद इस साल भी, उन मलिक, गुड़ियों के साथ खेत में काम करते होंगे।
मुझे सब से यह अच्छा लगा।
यह सड़क चलेंगे तो अवाज़ सुनाई दे रहा है। तोओकामाचि के बड़े लोग त तोओकामाचि बोली में ऐसा कहते हैं "आइए, अंदर अना।"रंग रंग के लकडी प्लेट में, हर बूडे लोगों के उपनाम लिखे हैं जो तोओकामाचि के एक छोटे इलाके में रहते हैं। मेरे पिता माता तोओकामचि वाले नहीं होने के बावजूद, उस बोली सुनकर कंठ भर आया।
पृथ्वी कला मेला के कलाकृतियाँ, इस साइट में देख सकते हैं। इमारत में नहीं, खुला जगह, सुन्दर देहात के नज़्ज़ारा के साथ, ताज़ा हवा लेते लेते देखने की कलाकृति भी बहुत खूब।
वहाँ तोओकामाचि में सन् 2000 से हर 3 साल में 'पृथ्वी (ज़मीन) कला मेला' का नाम Art Triennial आयोजित किया जाता है। 2000, 2003, 2006, 2009, अब तक चार बार। हर पृथ्वी कला मेला के लिए देश विदेशों से 150-250 कलाकार आकर कलकृतियाँ बनाते हैं। जब मैं 2006 में गई, भारतीय कलालार, Mandan Lal की कलाकृति भी देखा।
इस साल 2010, मेला का साल नही6 है। लेकिन तीन सालों के बीच में भी हर साल कुछ न कुछ कार्यक्रम चलाते हैं। अब अगस्त के अंतिम दिन तक करीब एक महीने के लिए तरह तहर के कार्यक्रम चले रहे हैं। इधर उधर के कलाकृतियाँ देखने घूमने की बस ब ही चलती है। ....हाँ, पृथ्वी कला मेला, म्यूजियम में देखते नहीं। तोओकामचि और इस के बगलवाले नगर, त्सुनंमाचि के 760km2 के इलाके में, इधर उधर कलाकृतियाँ बने हैं। खेत में, खाली ज़मीन पर, खाले मकान में...।
किमोनो उद्योग ढलने के बाद, अपने पुश्तैनी ज़मीन, मकान छोड़कर वहाँ से बड़े शहर गए, ऐसा लोग कम नहीं था। ऐसा खाले मकान, स्कूल में भी कलाकृति बनाना और सजाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।यह भी एक खाला मकान था।
यह एक किसान का पुराना मकान था। अब कोई भी नहीं रहते हैं। एक विश्वविद्यालाय के टीम ने इस मकान को पूरा उत्कीर्ण कर डाला...छत, फर्श, दीवार, सारा मकान को।
यह रूसी के Ilya & Emilia Kavakov का कलाकृति है।
इस खेत के मलिक बूढ़े होकर सीढ़ीदार खेत में चावल बनाने में कठिनाई महसूस करने लगे। अगले साल, चावल बनाना छोड़ दूँगा...ऐसा सोचते थे। लेकिन Ilya & Emilia Kavakov ने खेत में कलाकृति बनाए। वे कालकृति, गुड़िया, खेत में कम करने के लिए बाधा हैं। पर...मलिक को वे पसंद आया...और अब प्यारा लगता है। शायद इस साल भी, उन मलिक, गुड़ियों के साथ खेत में काम करते होंगे।
मुझे सब से यह अच्छा लगा।
यह सड़क चलेंगे तो अवाज़ सुनाई दे रहा है। तोओकामाचि के बड़े लोग त तोओकामाचि बोली में ऐसा कहते हैं "आइए, अंदर अना।"रंग रंग के लकडी प्लेट में, हर बूडे लोगों के उपनाम लिखे हैं जो तोओकामाचि के एक छोटे इलाके में रहते हैं। मेरे पिता माता तोओकामचि वाले नहीं होने के बावजूद, उस बोली सुनकर कंठ भर आया।
पृथ्वी कला मेला के कलाकृतियाँ, इस साइट में देख सकते हैं। इमारत में नहीं, खुला जगह, सुन्दर देहात के नज़्ज़ारा के साथ, ताज़ा हवा लेते लेते देखने की कलाकृति भी बहुत खूब।
29 July 2010
नूडल खाने का शिष्टाचार
जापान में आजकल खूब गर्मी पड़ती है। गर्मी मौसम में जैसा भारतीय खाना, थाइलैंड के खाना, ऐसा मसालेवाले यानि तीखा खाना अच्छा लगता है। लेकिन ज़्यादा गर्मी से खाने का इच्छा भी खो गया तो हम जापानी ठंडा खाना खाते हैं। जी, हम भी काफ़ी जानते हैं कि ठंडा खाना पेट के लिए इतना अच्छा नहीं है। फिर भी कम से कम कुछ खाने का इच्छा उठाने की ज़रूरत है। भारी गर्मी में ठंडा नूडल मज़ेदार लगता है।
जापान में नूडल के प्रकार बहुत ज़्यादा हैं। चौमेन की तरह नूडल भी हैं, लेकिन अधिकतर सूप के साथ खाते नूडल हैं। गैहूँ का नूडल, कूदू के नूडल, मोटा नूडल, पतला नूडल...तरह तरह के नूडल और तरह तरह के सूपके जुटाव अनेक है।
गर्मी मौसम में नूडल ठंडा सूप के साथ खाना अच्छा लगता है। सूप के साथ नूडल जल्दी खाना मज़ेदार है ताकि नूडल न पानी लेकर मोटा हो जाए। नूडल जल्दी खने में विशेष शिष्टाचार होता है कि कसकर आवाज़ करने का।
यह अजीब बात है। आमतौर पर जापानी शिष्टाचार में, खाने -पीने में आवाज़ करना करताया जाता है। हम आवाज़ न करने के लिए मुँह बंधकर चबाते हैं। सूप पीते समय भी धीमा लेते हैं। फिर भी नूडल लेने में ही आवाज़ न करके चबाएँ तो 'गाँवारी' कहा हाता है। नूडल चबाना देखने में बदमज़ा और भद्या लगता है। आवाज़ करेगे तो ठीक है...ऐसा आसनी बात नहीं है। देखने में ललित, और सुनने में स्वादिष्ट आवाज़ से खाना चाहिए।
सोओमें
जापान में नूडल के प्रकार बहुत ज़्यादा हैं। चौमेन की तरह नूडल भी हैं, लेकिन अधिकतर सूप के साथ खाते नूडल हैं। गैहूँ का नूडल, कूदू के नूडल, मोटा नूडल, पतला नूडल...तरह तरह के नूडल और तरह तरह के सूपके जुटाव अनेक है।
सोबा
उदों
गर्मी मौसम में नूडल ठंडा सूप के साथ खाना अच्छा लगता है। सूप के साथ नूडल जल्दी खाना मज़ेदार है ताकि नूडल न पानी लेकर मोटा हो जाए। नूडल जल्दी खने में विशेष शिष्टाचार होता है कि कसकर आवाज़ करने का।
यह अजीब बात है। आमतौर पर जापानी शिष्टाचार में, खाने -पीने में आवाज़ करना करताया जाता है। हम आवाज़ न करने के लिए मुँह बंधकर चबाते हैं। सूप पीते समय भी धीमा लेते हैं। फिर भी नूडल लेने में ही आवाज़ न करके चबाएँ तो 'गाँवारी' कहा हाता है। नूडल चबाना देखने में बदमज़ा और भद्या लगता है। आवाज़ करेगे तो ठीक है...ऐसा आसनी बात नहीं है। देखने में ललित, और सुनने में स्वादिष्ट आवाज़ से खाना चाहिए।
25 July 2010
भूमि पूजन
एक सवेरे हमरे घर से रास्ते के पार के ज़मीन पर भूमि पूजन करते देखा।
जापान में मकान या इमारत बनवाने से पहले, उस स्थल पर अनुष्ठान किया जाता है कि ज़मीन के भगवान को उस निर्माण कार्य की सुरक्षा और खैर मनाने के लिए। पूजन में कम से कम 3 लोग हिस्सा लेना चाहिए। मकानवाला, ठीकेदार और पूजा करते याजक ( पुजारी) ।
हमारे घर फ़्लैट के आठ वीं मंजिल में है। वहाँ से खींचने से फ़ोटो इतना साफ़ नहीं ।
बायाँ छातावाली महीला, शायद मकानवाला ( यजमान ) है। दायाँ खड़ा होते आदमी, वह ठीकेदार होगा। और बीच का किमोनोवोला, वह पूजारी है।
भूमि पूजन करने में 4 कोने में हरा बाँस खड़ा करके धान के पयाल से बने पवित्र रस्से बाँस के चार कोने को बाँधकर चौकार घेरा बनाते हैं। बाँस और धान के पयाल से बने घेरा पवित्र स्थान ( ज्ञमंडल ) मनाकर, अनुष्ठान स्थल हो जाता है। वहाँ पर एक मेज़ रखते हैं और उस पर शराब, पानी चावल, नमक, सब्जी, वैसा भोज लगाकर भूमि पूजन करते हैँ।
जापानी मकान लकड़ी और कागज़ से बना है। आगे लकड़ी बिठाने में भी और एक रस्म होगी। पूजन, रस्म, सब ताइआन...मंगल दिन में किया जाता है।
21 July 2010
कंडील मेला
पिछ्ले रविवार तक लगभग 2 महीने, हम रोज़ ढोल, बँसुरी बजने का आवाज़ से जगाए जाते थे। रोज़ सवेरे 5 बजे से ढोल और बँसुरी के आवाज़ सुनाई दे रहा था। 18 तरीख को त्योहार ख़तम होकर आवाज़ भी ख़तम हो गय। जूलाइ, अगस्त,गर्मी मौसम में, पूरे जापान के इधर उधर में त्योहार आयोजित किया जाता है।
यहाँ हमारे कुकि शहर (तोक्यो से करीब 50 km दूर पर) में हर साल जुलाई के 12 और 18 तरीख को चोचिन् मात्सुरि का नाम त्योहार आयोजित किया जाता है।
चोचिन्, कागज़ की कंडील है। 400-500 कंडील से सजाए रथ, शहर में धीरे धीरे निकालते हैं। कुकि शहर के सब से पुराने 7 इलाके के पास हर रथ है, और रात को एक जगह सब रथ इकट्ठा होकर अपने का सुन्दरता या बजाते ढाल, बाँसुरी की कारीगरी दिखाते हैं। आजकल का त्योहार अधिकतर छुट्ठी में चलाते है। लेकिन यह कंडील मेला हर साल एक ही दिन, जुलाइ के 12 और 18 तरीख को ही अयोजित किया जाता है, अगर उन दोनों दिन छुट्टी नहीं होने के बा वजूद। सुना है कि शिंतो धर्म, जापानी भगवान को अच्छी फ़स्ल मिलने को और मुसीबत दूर करने को प्रर्थना करने का त्योहार है।
रथ की बात करूँ तो आगमी शनिवार, 24 तरीख को, जापान में भी भगवान श्री जगन्नाथ के "रथ यात्र " आयोजित किया जाएगा। काई साल पहले से जापानवासी उड़िसी लोग रथ बनवाकर त्योहार चलाते हैं। मैं भी 2 साल पहले देखने गई। पूजा में नारियाल के टुकड़ा मिल। इस साल रथ यात्र योकोहामा में आयोजित किया जाएगा।
यहाँ हमारे कुकि शहर (तोक्यो से करीब 50 km दूर पर) में हर साल जुलाई के 12 और 18 तरीख को चोचिन् मात्सुरि का नाम त्योहार आयोजित किया जाता है।
चोचिन्, कागज़ की कंडील है। 400-500 कंडील से सजाए रथ, शहर में धीरे धीरे निकालते हैं। कुकि शहर के सब से पुराने 7 इलाके के पास हर रथ है, और रात को एक जगह सब रथ इकट्ठा होकर अपने का सुन्दरता या बजाते ढाल, बाँसुरी की कारीगरी दिखाते हैं। आजकल का त्योहार अधिकतर छुट्ठी में चलाते है। लेकिन यह कंडील मेला हर साल एक ही दिन, जुलाइ के 12 और 18 तरीख को ही अयोजित किया जाता है, अगर उन दोनों दिन छुट्टी नहीं होने के बा वजूद। सुना है कि शिंतो धर्म, जापानी भगवान को अच्छी फ़स्ल मिलने को और मुसीबत दूर करने को प्रर्थना करने का त्योहार है।
त्योहार का टी शार्ट
रथ की बात करूँ तो आगमी शनिवार, 24 तरीख को, जापान में भी भगवान श्री जगन्नाथ के "रथ यात्र " आयोजित किया जाएगा। काई साल पहले से जापानवासी उड़िसी लोग रथ बनवाकर त्योहार चलाते हैं। मैं भी 2 साल पहले देखने गई। पूजा में नारियाल के टुकड़ा मिल। इस साल रथ यात्र योकोहामा में आयोजित किया जाएगा।
12 July 2010
शोओजि के संबंध
कल शोओजि के बारे में लिखा। आज इस के संबंध काई बातें पर।
* * * * * * * * * * * * * *
शोओजि काग़ज़ अनपेक्षित टिकाऊ होने के बावजूद, काग़ज़ तो काग़ज़ है। ऊँगुली से चुभाएँगे रतो फट जाता है। लेकिन जालीदार पर सारा शोओजि काग़ज़ चिपकाना तो झंझट है। इसलिए जब शोओजि काग़ज़ के एक भाग फटता है, हम पैचवर्क की तरह छोटा काग़ज़ चिपकाते हैं। जालीदार के एक फ़्रेम के अनुसार, चौकोरे रूप के काग़ज़ भी चिपका सकते हैं, लेकिन अधिकतर लोग, फूल या पत्ते की रूप में काग़ज़ काट करके गोटा-पट्ठा की तरह चिपकाते हैं। पर इतना छोटा गोटा-पट्ठे के लिएम, मेरे बचपन में पकाए चावल को कुचलकर पेस्ट की जगह प्रयोग करते थे।
* * * * * * * * * * * * * *
शोओजि, लकड़ी के जालीदार पर काग़ज़ चिपकाते हुए दरवाज़ा है। लकड़ी के जालीदार के ऊपर, गर्द लग जाता है। हम शोओजि के गर्द, झाड़न से झाड़कर कपड़े से पोंछते साफ़ करते हैं।
लेकिन एक एक साफ़ करना बड़ा जाटिल है। व्यस्तता से और असावधानी से शोओजि की सफ़ाई पर कभी कभी ध्यान न देते हैं। ढुष्ट सास जी, जैसे टीवी कार्यक्रम में शोओजि के जालीदार को ऊँगुली से पोंछकर, "साफ नहीं है।", ऐसा कहाकर बहू को सताती हैं।


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शोओजि काग़ज़ अनपेक्षित टिकाऊ होने के बावजूद, काग़ज़ तो काग़ज़ है। ऊँगुली से चुभाएँगे रतो फट जाता है। लेकिन जालीदार पर सारा शोओजि काग़ज़ चिपकाना तो झंझट है। इसलिए जब शोओजि काग़ज़ के एक भाग फटता है, हम पैचवर्क की तरह छोटा काग़ज़ चिपकाते हैं। जालीदार के एक फ़्रेम के अनुसार, चौकोरे रूप के काग़ज़ भी चिपका सकते हैं, लेकिन अधिकतर लोग, फूल या पत्ते की रूप में काग़ज़ काट करके गोटा-पट्ठा की तरह चिपकाते हैं। पर इतना छोटा गोटा-पट्ठे के लिएम, मेरे बचपन में पकाए चावल को कुचलकर पेस्ट की जगह प्रयोग करते थे।
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शोओजि, लकड़ी के जालीदार पर काग़ज़ चिपकाते हुए दरवाज़ा है। लकड़ी के जालीदार के ऊपर, गर्द लग जाता है। हम शोओजि के गर्द, झाड़न से झाड़कर कपड़े से पोंछते साफ़ करते हैं।
लेकिन एक एक साफ़ करना बड़ा जाटिल है। व्यस्तता से और असावधानी से शोओजि की सफ़ाई पर कभी कभी ध्यान न देते हैं। ढुष्ट सास जी, जैसे टीवी कार्यक्रम में शोओजि के जालीदार को ऊँगुली से पोंछकर, "साफ नहीं है।", ऐसा कहाकर बहू को सताती हैं।
"साफ नहीं है।"
मुझे कमरा साफ करना इतना पसंद नहीं है, फिर भी मेरी स्वर्गीया सास जी बहुत अच्छी थीं, ऐसा कभी नहीं किया। 11 July 2010
काग़ज़ का दरवाज़ा
जापानी मकान लकड़ी और काग़ज़ से बना है। जापान के हवा-पानी में नमी ज़्यादा है, इसलिए नमी लेने-देने वाली लकड़ी और काग़ज़ मकान की सामाग्री की रूप में अच्छे हैं। हमारा फ़्लैट फेरो-कंक्रीट से बना है, लेकिन लकड़ी काग़ज़ से बने जापानी कमरे भी हैं। कंक्रीट नमी लेने-देने में असर नहीं है। लेकिन हमें परंपरित जापानी कमरा पसंद है। जापानी परंपरित कमरे में तातामिका नाम चटाई, हुसुमा का नाम काग़ज़ का बना किवाड, और शोओजि (शोजि) , काग़ज़ चिपकाए हुए जलीदार के दरवाज़ा या खिड़की हैं।
हुसुमा, शोओजि दोनों फिसलनेवाले हैं। हुसुमा बंद करें तो पार की दिखाई दे नहीं सकता, लेकिन चूंकि शोओजि के जालीदार पर चिपकाई काग़ज़ इतनी पतली है, इसलिए पारदर्शक दिखाई दे सकती है। शोओजि कमरे का रेशनदान है।
मेरी मैके में 3 जापानी कमरे हैं। तातामि, शोओजि या फुसुमा भी बहुत ज़्यादा हैं।
पहले शोओजि का काग़ज़ सब हमारे परिवार के हाथ से चिपकाते थे।
सब से पहले, शोओजि के पुराना काग़ज़ हटा कर, लकड़ी का जालीदार पानी से पूरा साफ़ करते हैं। और लकड़ी के जालीदार को काफ़ी सुकी होने के बाद, स्टार्च पेस्ट से शोओजि काग़ज़ जालीदार पर चिपकाते हैं। मेरे पिता जी अच्छी तरह चिपकाते थे। पिता जी के देहांत के बाद, मम्मी बूढ़ी होने से अपने हाथ से शोओजि का काग़ज़ चिपकाना छोड़ दिया। हर काई साल, फुसुमा-शोओजि बढ़ई को चिपकावाती हैं। इस साल मम्मी शोओजि का काग़ज़ बदरना चाहती हैं...और बढ़ई को बुलाने के पहले, घर साफ़ करने के लिए मुझे बुलाई। मैके में 20 से ज़्यादा शोओजियाँ हैं। सब को साफ करके नया काग़ज़ चिपकाने के लिए चौड़ी जगह चाहिए। लगता है कि फुसुमा का काग़ज़ भी 2-3 साल में बदरेंगे।
शोओजि और फुसुमा
हुसुमा, शोओजि दोनों फिसलनेवाले हैं। हुसुमा बंद करें तो पार की दिखाई दे नहीं सकता, लेकिन चूंकि शोओजि के जालीदार पर चिपकाई काग़ज़ इतनी पतली है, इसलिए पारदर्शक दिखाई दे सकती है। शोओजि कमरे का रेशनदान है।
मेरी मैके में 3 जापानी कमरे हैं। तातामि, शोओजि या फुसुमा भी बहुत ज़्यादा हैं।
जापानी कमरा
सब से पहले, शोओजि के पुराना काग़ज़ हटा कर, लकड़ी का जालीदार पानी से पूरा साफ़ करते हैं। और लकड़ी के जालीदार को काफ़ी सुकी होने के बाद, स्टार्च पेस्ट से शोओजि काग़ज़ जालीदार पर चिपकाते हैं। मेरे पिता जी अच्छी तरह चिपकाते थे। पिता जी के देहांत के बाद, मम्मी बूढ़ी होने से अपने हाथ से शोओजि का काग़ज़ चिपकाना छोड़ दिया। हर काई साल, फुसुमा-शोओजि बढ़ई को चिपकावाती हैं। इस साल मम्मी शोओजि का काग़ज़ बदरना चाहती हैं...और बढ़ई को बुलाने के पहले, घर साफ़ करने के लिए मुझे बुलाई। मैके में 20 से ज़्यादा शोओजियाँ हैं। सब को साफ करके नया काग़ज़ चिपकाने के लिए चौड़ी जगह चाहिए। लगता है कि फुसुमा का काग़ज़ भी 2-3 साल में बदरेंगे।
04 July 2010
तनहा धन्यवाद
एक दिन ज़ेब्रा क्रोसिंग पर एक विदेशी आदमी से संबोधित की गई थी । लाल बत्ती नीला रंग बदरने को इंतज़ार करते करते उस से हल्की बात करती थी।
'आप कहाँ जा रही हैं?'
'स्टेशान।'
'मैं भी आप के साथ स्टेशान जा सकता हूँ?'
'हाँ! क्यों नहीं?'
हम स्टेशान पहुँचे, तब उसने कहा।
'मुझ से बात करने के लिए धन्यवाद।'
मुझे यह सुनकर तनहा लगा...। 'बात करने के लिए धन्यवाद।' ?अब तक दूसरे जापानी ने उससे बात नहीं किया ?
अधिकतर जापनियों को अंग्रेज़ी नहीं आती है, इसलिए विदेशी से बार करने को डरते हैं, ऐसा जापानी भी होते होंगे, लेकिन उसी आदमी, मुझ से जापानी में बात करते थे।
और दूसरे दिन, रेल गाड़ी में एक जापानी आदमी, फर्श पर बैठते थे। वह मुझ से बुढ़े थे, इसलिए मैंने खड़ा होकर उसे अपने सीट दिया...और पता चला वह नशे में थे।
'बेहनो, शूक्रिया। तुम कहाँ जाओगी ?'
'मैं ....तक जाऊँगी।'
मैं ....तक जाऊँगा। उस स्टेशान तक यहाँ से कितने स्टेशान होंगे?।
'काई स्टेशान... गाड़ी पहुँचने से पहले, मैं आप को बताऊँगी। '
सवेरे था, पर वह नशे में होने से काफ़ी गडबड़ बात कहते थे। तब बच्चा लेते जवान मंमी आई। उस का बच्चा छोटा था। वह बुढ़े आदमी, उस मम्मी को अपने सीट देने के लिए खड़ा हुअ था। नशे से लडखड़ाने लगा। उसी गाड़ी के दूसरे काई पैसिंजर की खिल्ली की सुनाई दी।
मम्मी ने कहा,
'हम अगले स्टेशान पर उतर जाएँगे। आप बैटे रहिए।'
और उस मम्मी, बच्चा, अगले स्टेशान पर उतरकर चले गए।
उस के बाद, उस आदमी के स्टेशान तक हम बात की।
'सुनिए, आप का स्टेशान पहूँचवाले हैं।'
'अच्छा, बेहनो, शूक्रिया। यह लेना।'
उसने ऐसा कहाकर जीब से नोट निकला।
'नहीं, नहीं ....'
फिर तनहा लगा। उस आदमी किस के लिए पैसा देने चाहते थे? बात करने के लिए?
जापान कब से ऐसा देशा हो गया, बात करने के लिए धन्यवाद या पैसा देने का विचार उठने का।
'आप कहाँ जा रही हैं?'
'स्टेशान।'
'मैं भी आप के साथ स्टेशान जा सकता हूँ?'
'हाँ! क्यों नहीं?'
हम स्टेशान पहुँचे, तब उसने कहा।
'मुझ से बात करने के लिए धन्यवाद।'
मुझे यह सुनकर तनहा लगा...। 'बात करने के लिए धन्यवाद।' ?अब तक दूसरे जापानी ने उससे बात नहीं किया ?
अधिकतर जापनियों को अंग्रेज़ी नहीं आती है, इसलिए विदेशी से बार करने को डरते हैं, ऐसा जापानी भी होते होंगे, लेकिन उसी आदमी, मुझ से जापानी में बात करते थे।
और दूसरे दिन, रेल गाड़ी में एक जापानी आदमी, फर्श पर बैठते थे। वह मुझ से बुढ़े थे, इसलिए मैंने खड़ा होकर उसे अपने सीट दिया...और पता चला वह नशे में थे।
'बेहनो, शूक्रिया। तुम कहाँ जाओगी ?'
'मैं ....तक जाऊँगी।'
मैं ....तक जाऊँगा। उस स्टेशान तक यहाँ से कितने स्टेशान होंगे?।
'काई स्टेशान... गाड़ी पहुँचने से पहले, मैं आप को बताऊँगी। '
सवेरे था, पर वह नशे में होने से काफ़ी गडबड़ बात कहते थे। तब बच्चा लेते जवान मंमी आई। उस का बच्चा छोटा था। वह बुढ़े आदमी, उस मम्मी को अपने सीट देने के लिए खड़ा हुअ था। नशे से लडखड़ाने लगा। उसी गाड़ी के दूसरे काई पैसिंजर की खिल्ली की सुनाई दी।
मम्मी ने कहा,
'हम अगले स्टेशान पर उतर जाएँगे। आप बैटे रहिए।'
और उस मम्मी, बच्चा, अगले स्टेशान पर उतरकर चले गए।
उस के बाद, उस आदमी के स्टेशान तक हम बात की।
'सुनिए, आप का स्टेशान पहूँचवाले हैं।'
'अच्छा, बेहनो, शूक्रिया। यह लेना।'
उसने ऐसा कहाकर जीब से नोट निकला।
'नहीं, नहीं ....'
फिर तनहा लगा। उस आदमी किस के लिए पैसा देने चाहते थे? बात करने के लिए?
जापान कब से ऐसा देशा हो गया, बात करने के लिए धन्यवाद या पैसा देने का विचार उठने का।
01 July 2010
अगेहा तितली
पिछले साल एक दोस्त से ' संशो ' ... तेजफल क पेड़ मिला।
उस पत्ते के ख़ास अपना सुगंध और स्वाद है।
एक पत्ते सजाने से सब्जी काफ़ी अच्छी हो जाती है। हम भी वसंत में नए नए तेजफल के पत्ते कभी कभी खाते थे।
अब पत्ते सख़त होकर खाने के लिए अच्छा नहीं हो गया।
हमरे किए स्वादिष्ट अच्छा नहीं होने के बावजूद, अगेहा का नाम तितलियों को तेजफल के पत्ते बहुत पसंद है।
एक दिन तेजफल के पेड़ में दो इल्लियाँ देख लीं। अगेहा तितली की इल्ली, शुरू में काली है...पक्षी की बीट की शकल-सूरत दिखावा करती है ताकि पक्षी से नखाई जाएँ। हरे पत्ते खाते खाते इल्ली भी हरी हो जाती है।


हमरा परिवार का कुल चिह्न अगेहा तितली है।
सालों पहले दूसरी प्रकार तित्ली की इल्ली भी हमरे फ़्लैट के पर्स्ले पत्ते खाकर तितली बन गई। इस समय भी इल्ली से तितली बनने का दिन की प्रतीक्षा करते रोज़ इल्ली देखते थे। हमारा तेजफल दो इल्लियाँ पत्ते खाने के लिए छोटा है, ऐसा सोचकर मैनंने एक इल्ली बाहर छोड़ दी।
दो तीन दिन से इल्ली हरी रंग हो गई। शायद आज या कल प्यूपा हो जाएगी ... फ़िर तितली।
उस समय का रास्ता देखते देखते, आज काई बार तेजफल देखती थी। लाँच के बाद तो ज़ररूर तेज फल के पेड़ पर थी। लेकिन शाम को फिर देखी तो गायब हो गई। कहाँ गई ? पक्षी से खाई गई क्या ?
उस पत्ते के ख़ास अपना सुगंध और स्वाद है।
एक पत्ते सजाने से सब्जी काफ़ी अच्छी हो जाती है। हम भी वसंत में नए नए तेजफल के पत्ते कभी कभी खाते थे।
करीर, बाँस क नया कल्ला और तेजफलका पत्ता
अब पत्ते सख़त होकर खाने के लिए अच्छा नहीं हो गया।
हमरे किए स्वादिष्ट अच्छा नहीं होने के बावजूद, अगेहा का नाम तितलियों को तेजफल के पत्ते बहुत पसंद है।
एक दिन तेजफल के पेड़ में दो इल्लियाँ देख लीं। अगेहा तितली की इल्ली, शुरू में काली है...पक्षी की बीट की शकल-सूरत दिखावा करती है ताकि पक्षी से नखाई जाएँ। हरे पत्ते खाते खाते इल्ली भी हरी हो जाती है।


हमरा परिवार का कुल चिह्न अगेहा तितली है।
सालों पहले दूसरी प्रकार तित्ली की इल्ली भी हमरे फ़्लैट के पर्स्ले पत्ते खाकर तितली बन गई। इस समय भी इल्ली से तितली बनने का दिन की प्रतीक्षा करते रोज़ इल्ली देखते थे। हमारा तेजफल दो इल्लियाँ पत्ते खाने के लिए छोटा है, ऐसा सोचकर मैनंने एक इल्ली बाहर छोड़ दी।
दो तीन दिन से इल्ली हरी रंग हो गई। शायद आज या कल प्यूपा हो जाएगी ... फ़िर तितली।
उस समय का रास्ता देखते देखते, आज काई बार तेजफल देखती थी। लाँच के बाद तो ज़ररूर तेज फल के पेड़ पर थी। लेकिन शाम को फिर देखी तो गायब हो गई। कहाँ गई ? पक्षी से खाई गई क्या ?
29 June 2010
संख्यावाचाक
जापान में बहुत अच्छी जापानी बोलते भारतीय लोग ज़्यादा रहते हैं। लगता है कि भारतीय लोग भाषाएँ के बारे में खासकर प्रातिभावान हैं। सब लोगों को अपनी मातृभाषा के अलावा, काई भाषाएँ आते हैं। हम जापानी अधिकतम जापानी ही बोलते हैं। अंग्रेज़ी जापान में भी एक अनिवार्य विषय और जुनियर हाइ स्कूल से कॉलेज तक 10 सालों के लिए सीखने के बावजूद, मैं अच्छी तरह बोल नहीं सकती। हम कॉलेज या विशवविद्यालय में भी हर विषय जापानी में सीखते हैं।
भारतीय लोगों की प्रतिभा से ही नहीं, मुझे लगता है जापनी भाषा, हिन्दी से आसान है। जापानी में स्त्रीलिंगम पुलिंग नहीं है। एकवचन, बहुवचन का अंतर भी अधिकतर नहीं , कालिक रूप भी हिंदी की अपेक्षा इतना गूढ़ नहीं है।
फ़िर जापनी में 3 लिपियाँ होते हैं। 2प्रकार की लिपियाँ फ़ोनोग्राम हैं, और दोनों के पास करीब 50 अक्षर हैं। एक लिपी चीनी मूल की चित्रकक्षर, और आम का जापानी, उन में से करीब 3000 अक्षर याद करते हैं। इसलिए लिखने पढ़ने में जापानी मुश्किल है।
जापानी बोलने में, विदेशी लोगों के लिए शायद सम्मांसूचक शब्द और संख्यावाचक कठिन होगा।
हिन्दी में किसी का संख्या कहने में, इस चीज़ से पहले संख्या लगाते हैं, जैसा एक बच्चा, 2 पुस्तक, 3 चाय, 4 पेड ...लेकिन जापानी में सिर्फ़ संख्या ही नहीं, हर संख्यावाचक भी लगाना है। जैसा अंग्रेज़ी का a cup of tea, a peice of paper बगैरह बगैरह। ऐसा संख्यावाचक जापनी में हज़ारों हैं। और जापानी में संख्या कहने में 2 प्रकार हैं। परंपरित जापानी ( जैसा संस्कृत) , और चीनी मूल (जैसा फ़ारसी) का संख्या ।
अधिकतर हर चीज़ों का संख्या कहने के लिए हर संख्यावाचक हैं। तो संख्यावाचक के बाद का शब्द न सुनने पर भी अधिकतर पता चलता है, किस विषय पर बात करते हैं। उदाहरण के लिए, ' 4 निं आए। ' ...यह सुनकर मालूम होता है कि आए तो इंसान थे। क्योंकि ' निं ' इंसान का संख्यावाचक है। '2 हिकि आए। ' .. .यह भी फ़र्ज कर सकते हैं, आए तो शायद कुत्ते, बिल्ली, ऐसा जानवर होगे। हाथी या घोड़ा की तरह बड़े जानवर नहीं होगा, क्योंकि ऐसे जानवरों के लिए दूसरा संख्यावाचक होता है। लेकिन कठिन बात यह है, छोटी तितिली का संख्या कहने के लिए, न जाने क्यों, हाथी के एक ही संख्यावाचक हम प्रयोग करते हैं।
भारतीय लोगों की प्रतिभा से ही नहीं, मुझे लगता है जापनी भाषा, हिन्दी से आसान है। जापानी में स्त्रीलिंगम पुलिंग नहीं है। एकवचन, बहुवचन का अंतर भी अधिकतर नहीं , कालिक रूप भी हिंदी की अपेक्षा इतना गूढ़ नहीं है।
फ़िर जापनी में 3 लिपियाँ होते हैं। 2प्रकार की लिपियाँ फ़ोनोग्राम हैं, और दोनों के पास करीब 50 अक्षर हैं। एक लिपी चीनी मूल की चित्रकक्षर, और आम का जापानी, उन में से करीब 3000 अक्षर याद करते हैं। इसलिए लिखने पढ़ने में जापानी मुश्किल है।
जापानी बोलने में, विदेशी लोगों के लिए शायद सम्मांसूचक शब्द और संख्यावाचक कठिन होगा।
हिन्दी में किसी का संख्या कहने में, इस चीज़ से पहले संख्या लगाते हैं, जैसा एक बच्चा, 2 पुस्तक, 3 चाय, 4 पेड ...लेकिन जापानी में सिर्फ़ संख्या ही नहीं, हर संख्यावाचक भी लगाना है। जैसा अंग्रेज़ी का a cup of tea, a peice of paper बगैरह बगैरह। ऐसा संख्यावाचक जापनी में हज़ारों हैं। और जापानी में संख्या कहने में 2 प्रकार हैं। परंपरित जापानी ( जैसा संस्कृत) , और चीनी मूल (जैसा फ़ारसी) का संख्या ।
अधिकतर हर चीज़ों का संख्या कहने के लिए हर संख्यावाचक हैं। तो संख्यावाचक के बाद का शब्द न सुनने पर भी अधिकतर पता चलता है, किस विषय पर बात करते हैं। उदाहरण के लिए, ' 4 निं आए। ' ...यह सुनकर मालूम होता है कि आए तो इंसान थे। क्योंकि ' निं ' इंसान का संख्यावाचक है। '2 हिकि आए। ' .. .यह भी फ़र्ज कर सकते हैं, आए तो शायद कुत्ते, बिल्ली, ऐसा जानवर होगे। हाथी या घोड़ा की तरह बड़े जानवर नहीं होगा, क्योंकि ऐसे जानवरों के लिए दूसरा संख्यावाचक होता है। लेकिन कठिन बात यह है, छोटी तितिली का संख्या कहने के लिए, न जाने क्यों, हाथी के एक ही संख्यावाचक हम प्रयोग करते हैं।
23 June 2010
पहचान
भरतीय लोगों से काई बार पूछी जाती हूँ कि जापानी महिलाओं, विवाहित-अविवाहित, कैसे पहचाएँ? भारत में मंगलसूत्र, सिंदूर, या वेडिंग रिंग हैं। सुना है, इसलिए आसनी से पता चलता है। लेकिन जापान में वेडिंग रिंग भी सब का सब विवाहित व्यक्ति पहनना तो ज़रूर नहीं है। शादी में वेडिंग रिंग अदला-बदला करना तो आजकल हमरा आदत हो गया, लेकिन पहले तो ऐसा नहीं था, और शादी के बाद रोज़ रिंग पहननेवाले ज़्यादा नहीं हैं। मेरे पति और मुझ दोनों को रिंग पसंद नहीं है, इसलिए पहले से वेडिंग रिंग नहीं खरीदीं।
बहुत पहले, जब हम जापानी रोज़ किमोनो पहनते थे, तब किमोनो की आस्तीन से पता चला। अविवाहित लड़कियों के किमोनो के पास लम्बी आस्तीन हैं, और विवाहित महिलाओं के किमोनो की आस्तीन छोटी हैं। और विस्तार से ठीक ठीक बताऊँ तो, अविवाहित महिला, छोटी आस्तीन वाली किमोनो भी पहन सकती हैं, पर विवाहित नहिलाएँ, लम्बी वाली पहनना नहीं मनना जाता है। सिर्फ लम्बीवाली पहननेवाली ही अबविवाहित महिला हैं।
विवाहित महिला...छोटी आस्तीन किमोनो
आदमी के बारे में देखने में अविवाहित-विवाहित पहचाना उपाय, मैं नहीं जानती हूँ।
आम तौर पर जापान में देखने में दूसरों को पहचान करना तो मुश्किल है।बोलेंगे तो बोली के असर से अधिकतर पता चलेगा कि कहाँ में पला है। चेहरा या क़द-काठ में भी बहुत कम लगाने की समाग्री मिल सकते हो...उत्तरी जापान में गोरे लोग अपेक्षाकृत ज़्यादा रहते हैं।लेकिन कुलनाम से ज़्यादा पता नहीं चलता है....150 साल से पहले तक अधिकतम जनता के पास कुलनाम नहीं था। कुलनाम लगाने का व्यवस्था शुरू हुआ, सब अपनी मर्जी या कोई कारण से अपना कुलनाम लगाया।...इस के बारे में फिर लिखना चाहती हूँ।
बहुत पहले, जब हम जापानी रोज़ किमोनो पहनते थे, तब किमोनो की आस्तीन से पता चला। अविवाहित लड़कियों के किमोनो के पास लम्बी आस्तीन हैं, और विवाहित महिलाओं के किमोनो की आस्तीन छोटी हैं। और विस्तार से ठीक ठीक बताऊँ तो, अविवाहित महिला, छोटी आस्तीन वाली किमोनो भी पहन सकती हैं, पर विवाहित नहिलाएँ, लम्बी वाली पहनना नहीं मनना जाता है। सिर्फ लम्बीवाली पहननेवाली ही अबविवाहित महिला हैं।

विवाहित महिला...छोटी आस्तीन किमोनो
अविवाहित लड़की ...लम्बी आस्तीन किमोनो
आम तौर पर जापान में देखने में दूसरों को पहचान करना तो मुश्किल है।बोलेंगे तो बोली के असर से अधिकतर पता चलेगा कि कहाँ में पला है। चेहरा या क़द-काठ में भी बहुत कम लगाने की समाग्री मिल सकते हो...उत्तरी जापान में गोरे लोग अपेक्षाकृत ज़्यादा रहते हैं।लेकिन कुलनाम से ज़्यादा पता नहीं चलता है....150 साल से पहले तक अधिकतम जनता के पास कुलनाम नहीं था। कुलनाम लगाने का व्यवस्था शुरू हुआ, सब अपनी मर्जी या कोई कारण से अपना कुलनाम लगाया।...इस के बारे में फिर लिखना चाहती हूँ।
21 June 2010
लोहा
जापान में ऐसा लोग 'लोहा' कहलाते हैं, जिन्हें रेलवे बहुत पसंद है। रेलेवे प्रेमी। रेलवे को जापानी में तेत्सुदो...'लोहे का रास्ता' कहते हैं। तेत्सु मतलब 'लोहा', और दो 'रास्ता' है। हम रेलवे प्रेमी को सिर्फ़ तेत्सु, या अपनेपन से ते-च्चान (तेत्सु चान) कहते हैं। चानवाले का चान है।
लोहे को रेलवे लाइन या रेल गाड़ी के प्रकार ही नहीं, टाइम टेबुल, रेल गाड़ी चलने का आवाज़, रेलवे का टिफ़िन, तरह तरह रेलवे से संबंध उत्सुकता लगाती हैं ।
मेरे पति कहते हैं, मेरे ख़ून में भी लोहा काफ़ी होता है। इतना 'लोहा' नहीं हूँ, लेकिन मुझे भी रेलवे से चलना बहुत पसंद है। हवाई जहाज़ का टिकट कभी कभी रेलवे के से सस्ता होने के बावजूद, हमरी यात्र, ज़्यादातर रेल गड़ी से हैं। टाइम टेबुल देखते देखते कहाँ कब पहुँचेंगे, और उस के बाद किस गाड़ी पकड़ें, ऐसा योजना बनाकर टिकेट का आरक्षित करना तो यात्र वही से ज़्यादा पसंद है।
लेकिन मेरे विचार में मैं खास नहीं है। जैसा मैं, भातरत प्रेमी जापानियों सभी को, भारत में घूमते घूमते आखिर रेलवे पसंद हो जाता है। भारत बड़ा देश है और रेल गाड़ी में रहने का समय भी लम्बा है। हम जापान में 5 घंटे से ज़्यादा अधिकतर नहीं बैठते हैं। 5 घंटे से ज़्यादा समय लगेंगे तो शायद हावाई जहाज़ से जाना रेलवे से सस्ता और सुखुद जा सकते हैं। मैंने बर्थ भारत में पहली बार इस्तेमाल किया।
जापान में कहीं जाना चाहते हैं तो रात तक होटल पहुँचना होगा, लेकिन भारत में रेलगाड़ी में सोते सोते सवेरे कहीं स्टेशान पहुँच सकते हैं। यह बहुत अच्छा है और भारत के स्टेशान के पास रिटाइयारिंग रूम और शावर रूम हैं। रात देर पहुँचेंगे तो स्टेशान में ठहर सकते हैं और नहाकर बाहर जा सकते हैं। अच्छी सुविधाएं और अच्छी व्यवस्था है। जापान के स्टेशान के पास नहीं है, वह रुकने के लिए नहीं, गुज़र जाने की जगह है।
मगर अगर जापान के स्टेशान के पास ऐसा सुविधाएँ होने पर, जापान की यात्र इतना ज़्यादा मज़ेदार नहीं होगी उतना मैंने भारत में अनुभव प्राप्त किया।क्योंकि जापानी रेलगाड़ी में सब चुपचप रहते बैटते हैं। बगल के सीट पर बैटते हुए अंजान से बात करने का आदत नहीं है। सब PC से काम करते हैं, सोते हैं, पुस्तक पढते हैं, इयर फोने से सुनते हैं...खुद मज़ा लेते हैं।
लोहे को रेलवे लाइन या रेल गाड़ी के प्रकार ही नहीं, टाइम टेबुल, रेल गाड़ी चलने का आवाज़, रेलवे का टिफ़िन, तरह तरह रेलवे से संबंध उत्सुकता लगाती हैं ।
मेरे पति कहते हैं, मेरे ख़ून में भी लोहा काफ़ी होता है। इतना 'लोहा' नहीं हूँ, लेकिन मुझे भी रेलवे से चलना बहुत पसंद है। हवाई जहाज़ का टिकट कभी कभी रेलवे के से सस्ता होने के बावजूद, हमरी यात्र, ज़्यादातर रेल गड़ी से हैं। टाइम टेबुल देखते देखते कहाँ कब पहुँचेंगे, और उस के बाद किस गाड़ी पकड़ें, ऐसा योजना बनाकर टिकेट का आरक्षित करना तो यात्र वही से ज़्यादा पसंद है।
लेकिन मेरे विचार में मैं खास नहीं है। जैसा मैं, भातरत प्रेमी जापानियों सभी को, भारत में घूमते घूमते आखिर रेलवे पसंद हो जाता है। भारत बड़ा देश है और रेल गाड़ी में रहने का समय भी लम्बा है। हम जापान में 5 घंटे से ज़्यादा अधिकतर नहीं बैठते हैं। 5 घंटे से ज़्यादा समय लगेंगे तो शायद हावाई जहाज़ से जाना रेलवे से सस्ता और सुखुद जा सकते हैं। मैंने बर्थ भारत में पहली बार इस्तेमाल किया।
जापान में कहीं जाना चाहते हैं तो रात तक होटल पहुँचना होगा, लेकिन भारत में रेलगाड़ी में सोते सोते सवेरे कहीं स्टेशान पहुँच सकते हैं। यह बहुत अच्छा है और भारत के स्टेशान के पास रिटाइयारिंग रूम और शावर रूम हैं। रात देर पहुँचेंगे तो स्टेशान में ठहर सकते हैं और नहाकर बाहर जा सकते हैं। अच्छी सुविधाएं और अच्छी व्यवस्था है। जापान के स्टेशान के पास नहीं है, वह रुकने के लिए नहीं, गुज़र जाने की जगह है।
मगर अगर जापान के स्टेशान के पास ऐसा सुविधाएँ होने पर, जापान की यात्र इतना ज़्यादा मज़ेदार नहीं होगी उतना मैंने भारत में अनुभव प्राप्त किया।क्योंकि जापानी रेलगाड़ी में सब चुपचप रहते बैटते हैं। बगल के सीट पर बैटते हुए अंजान से बात करने का आदत नहीं है। सब PC से काम करते हैं, सोते हैं, पुस्तक पढते हैं, इयर फोने से सुनते हैं...खुद मज़ा लेते हैं।
रेलवे म्यूजियम, दिल्ली
17 June 2010
जापानी मिठाई का दिन
कल 16 जून, जापानी मिठाई का दिन था। सुना है कि सन् 848, जापान में महामरी से ज़्यादा लोग मर गए। उसी समय के सम्राट महामरी हटाने को भगवान से प्रार्थना करके 16 मिठाइयाँ चढ़ाएँ। उस दिन को जापानी मिठाई का दिन रखा था।
रोज किसी का दिन है। इसलिए ख़ासकर ध्यान नहीं रखती हूँ, फ़िर भी मुझे जापानी मिठाई बहुत पसँद है।
भारतीय मिठाई अधिकतर दूध, बेसन, घी, मासाले और चीनी से बनी है। यूरोप की तो मैदा, अंडा, मक्खन और चीनी से। और जापानी मिठाई, अधिकतर चावल, चीनी और बीन से बनी है। तेल मक्खन के बिना, कैलोरी कम है। बीन, खासकर अज़ुकि बीन बहुत ज़्यादा इस्तेमाल की जाती है। बाकला या दूसरे बीन भी हम उपयोग करते हैं। लगता है अज़ुकि का स्वाद मूँग से मिलता जुलता है।
यह अज़ुकि चीनी के साथ उबालकर कूटे चावल, मोचि के साथ खाते हैं। ऐसा उबालने के बाद ठंडा रखकर, ऐगार से साथ खाती गर्मियों की मिठाई भी है।
कूटे अज़ुकि ख़ासकर अंको कहाकर जैसा मसला डोसे के मासाला, चावल या मैदे से बनी पिंड या लड्डू में डालते हैं। बोतमोचि, अंको से लिपटे हुई चावल है।
यह मिनाज़ुकि का नाम मिठाई है। मिनाज़ुकि, पुरानी जापानी में 'जून' है। कहा जाता है कि जून के अंतिम दिन ( 30 तारीख) को यह मिठाई खाकर बाकी आधा साल का नीरोगता को प्रर्थना करें तो अच्छा है। यह भी चावल आटा, मैदा या कोई स्टार्च, चीनी और अज़ुकि से बनी है।
रोज किसी का दिन है। इसलिए ख़ासकर ध्यान नहीं रखती हूँ, फ़िर भी मुझे जापानी मिठाई बहुत पसँद है।
भारतीय मिठाई अधिकतर दूध, बेसन, घी, मासाले और चीनी से बनी है। यूरोप की तो मैदा, अंडा, मक्खन और चीनी से। और जापानी मिठाई, अधिकतर चावल, चीनी और बीन से बनी है। तेल मक्खन के बिना, कैलोरी कम है। बीन, खासकर अज़ुकि बीन बहुत ज़्यादा इस्तेमाल की जाती है। बाकला या दूसरे बीन भी हम उपयोग करते हैं। लगता है अज़ुकि का स्वाद मूँग से मिलता जुलता है।
अज़ुकि (लाल) ,मूँग, बाकला
जैसी देखने में बिल्कुल दाल, जापान में ऐसी मिठाई भी होती है।
ज़ेंज़ाई
कूटे अज़ुकि ख़ासकर अंको कहाकर जैसा मसला डोसे के मासाला, चावल या मैदे से बनी पिंड या लड्डू में डालते हैं। बोतमोचि, अंको से लिपटे हुई चावल है।
एक बार भारत में एक घर में, मैने जैज़ा अंको देखा है।
इस से बना मीठा पराठा खाया। इस का नाम क्या है?
यह मिनाज़ुकि का नाम मिठाई है। मिनाज़ुकि, पुरानी जापानी में 'जून' है। कहा जाता है कि जून के अंतिम दिन ( 30 तारीख) को यह मिठाई खाकर बाकी आधा साल का नीरोगता को प्रर्थना करें तो अच्छा है। यह भी चावल आटा, मैदा या कोई स्टार्च, चीनी और अज़ुकि से बनी है।
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